भारत की सर्वोच्च अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही मुफ्त वाली योजनाओं यानि फ्रीबीज जिन्हें सियासी भाषा में मुफ्त की रेवड़िया कहा जा रहा है उसपर कड़ी नाराजगी जताई है। एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा , लोगों को सबकुछ मुफ्त में मिल रहा है इसलिए वो काम करना नहीं चाहते, क्या हम इस तरह परजीवियों का एक वर्ग तैयार नहीं कर रहे?
बेघर लोगों को शहरी क्षेत्रों में आश्रय (घर) मुहैया कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये सख्त टिप्पणी की। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए फ्रीबीज पर सख्त ऐतराज जताया, कोर्ट ने चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुफ्त योजनाओं की घोषणा पर नाराजगी जाहिर की।
पीठ ने कहा- ” ये कहते हुए दुख हो रहा है, लेकिन क्या बेघर लोगों को समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं किया जाना चाहिए, ताकि वे भी देश के विकास में योगदान दे सकें। क्या हम इस तरह से परजीवियों का एक वर्ग तैयार नहीं कर रहे हैं? मुफ्त की योजनाओं के चलते,लोग काम नहीं करना चाहते। उन्हें बिना कोई काम किए मुफ्त राशन मिल रहा है।”
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने पीठ को बताया कि केंद्र सरकार ने आश्रय स्थल योजना के तहत दिए जाने वाला फंड पिछले कुछ वर्षों से बंद कर दिया जिसे इस सर्दी में ही सैकड़ों बेघर लोग ठंड से मर गए। उन्होंने कहा सरकार की प्राथमिकता में गरीब लोग नहीं उसकी प्राथमिकता अमीरों के साथ है, प्रशांत भूषण की इस टिप्पणी पर कोर्ट ने नाराजगी जताई और कहा राजनीतिक बयानबाजी की यहाँ इजाजत नहीं है।
सुनवाई के दौरान सरकार का पक्ष रखने मौजूद अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी ने कोर्ट को बताया, शहरी इलाकों में गरीबी को दूर करने के लिए केंद्र सरकार प्रक्रिया को अंतिम रूप दे रही है। जिसमें शहरी इलाकों में बेघर लोगों को आश्रय देने का भी प्रावधान होगा। इस पर पीठ ने कहा कितने दिन में इस योजना को लागू किया जाएगा , ये सरकार से पूछकर स्पष्ट कीजिये। अटॉर्नी ने इसके लिए समय मांगा जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई छह हफ्ते के लिए टाल दी।
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